बिभिषण छन्
आफ्नै घर ध्वस्त भो
खुशी कस्तो यो ?
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आकाशगङ्गा
रङ्ग फेरि रहन्छ
अतल भोक ।
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नुनिलो पानी
छ समुद्रीक भोक
अज्ञानि माझि
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आड भरोसा
अनुरक्त लिस्नो छ
माध्यम एक
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अपूर्ण जोहो
प्रतिक्षामा बगर
अमेट्य प्यास।
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पर्दामा सबै
जोडिएको संसार
भिन्न छु भन्छन्
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