हिन्दी गजल : आद्मी कि शिकार
~आविष्कार
आदमी आदमी कि सिकार क्यों है
बेमत्लब सान कि दरकार क्यों है ।
युँ तो सब बैठें हैं हात फैलाए
मन्दिरों मैं लम्बीलम्बी कतार क्यों है ।
कब्र से चिल्ला चिल्लाकर केहेते हैं वोह
अकेले पड्जाता यहाँ प्यार क्यों है ।
आहट सि धुन्धली कुछ सुनाई दि तो
दिल आज भि कुछ बेकरार क्यों है ।
सम्भल सकते अगर मोहबत मैं
मौत भि बनजाती यार क्यों है ।
~आविष्कार
आदमी आदमी कि सिकार क्यों है
बेमत्लब सान कि दरकार क्यों है ।
युँ तो सब बैठें हैं हात फैलाए
मन्दिरों मैं लम्बीलम्बी कतार क्यों है ।
कब्र से चिल्ला चिल्लाकर केहेते हैं वोह
अकेले पड्जाता यहाँ प्यार क्यों है ।
आहट सि धुन्धली कुछ सुनाई दि तो
दिल आज भि कुछ बेकरार क्यों है ।
सम्भल सकते अगर मोहबत मैं
मौत भि बनजाती यार क्यों है ।
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