कविता : विश्वास
~आ'बिष'कार
हर कर्म
हर अकर्मण्यता
हर शब्द
हर नाता
हर आस्था
हर अबिश्वास
हर शून्य
हर निराकार
हर आकार स्वरुपमा
अनन्त
विश्वाश भरिन्छ
तब न
ईश बन्छ ।
(7-9-2018)
~आ'बिष'कार
हर कर्म
हर अकर्मण्यता
हर शब्द
हर नाता
हर आस्था
हर अबिश्वास
हर शून्य
हर निराकार
हर आकार स्वरुपमा
अनन्त
विश्वाश भरिन्छ
तब न
ईश बन्छ ।
(7-9-2018)
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