Sunday, April 10, 2011

कविता : मक्ख परेकी छे

मक्ख परेकी छे

आज चन्द्रमा पूर्ण छे
त्यसैले शायद मख्ख परेकी छे
भानुको प्रकाशले पोतिएर दन्ङ परेकी छे
नवयौवना सरी उन्मत्त देखिएकी छे
बिचरी सदा रहन्छु यस्तै भन्ने भान छ
ददिब्यमान स्वरुप मर्दैन भन्ने शान छ
त्यस्लाई शायद पत्तो छैन
औंसी हरेक पुर्णे पछी नै आउँछ
अन्धकारले त्यसको कलिलो आशा हरेर लानेछ
बिचरी पूर्ण चन्द्रमा आज मक्ख परेकी छे ।।
-आ'बिष'

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